जितिया व्रत या जीवितपुत्रिका व्रत भारत में विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के क्षेत्रों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यह व्रत माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
आइए जानते हैं जितिया व्रत 2025 की तिथि, नहाय-खाय, उपवास, पूजा-विधि और पारण का संपूर्ण विवरण।
📅 जितिया व्रत 2025 की तिथि और समय (IST)
- नहाय-खाय (सप्तमी): 13 सितंबर 2025, शनिवार
- जितिया उपवास (अष्टमी): 14 सितंबर 2025, रविवार
- पारण (नवमी): 15 सितंबर 2025, सोमवार सुबह 06:00 बजे के बाद
(तिथि एवं मुहूर्त पंचांग गणना के आधार पर हैं, स्थान अनुसार थोड़े अंतर संभव हैं।)
🙏 नहाय-खाय विधि
व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती महिलाएँ नदी, तालाब या गंगाजल से स्नान कर शुद्धता ग्रहण करती हैं।
- स्नान के बाद सात्विक भोजन (अरवा चावल, मूंग दाल, कद्दू की सब्जी) ग्रहण किया जाता है।
- इसके बाद अगले दिन के निर्जला उपवास की तैयारी होती है।
- मान्यता है कि नहाय-खाय का सात्विक भोजन व्रती को उपवास की शक्ति देता है।
🌙 जितिया व्रत (अष्टमी उपवास)
- अष्टमी तिथि को महिलाएँ बिना अन्न और जल ग्रहण किए निर्जला व्रत रखती हैं।
- दिनभर जीवित्पुत्रिका माता और भगवान विष्णु का स्मरण करती हैं।
- कथा सुनना और अन्य महिलाओं के साथ पूजा करना शुभ माना जाता है।
📖 जितिया व्रत कथा का महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, शेरनी और सियारिन की कथा तथा राजा जीमूतवाहन की कथा विशेष रूप से कही जाती है।
कहानी का संदेश है कि सच्ची भक्ति और संकल्प से संतान की रक्षा होती है।
🪔 पूजन-विधि
- घर या पूजा स्थल पर मिट्टी की प्रतिमा बनाकर जीवित्पुत्रिका माता का पूजन करें।
- अरवा चावल, दूब घास, सिंदूर, दीपक और फल चढ़ाएँ।
- रात्रि में जितिया व्रत कथा सुनें और संकल्प लें।
- महिलाएँ परंपरागत गीत भी गाती हैं, जैसे –
“जितिया माई के व्रत हम करेली, संतान के सुख-समृद्धि पावेली।”
🌸 जितिया व्रत कथा (संक्षेप में)
1. शेरनी और सियारिन की कथा
बहुत समय पहले एक जंगल में शेरनी और सियारिन रहती थीं। दोनों ने जितिया व्रत रखने का संकल्प किया।
- शेरनी ने पूरे नियम-निष्ठा के साथ व्रत किया, जबकि सियारिन व्रत का पालन ठीक से नहीं कर सकी।
- परिणामस्वरूप, शेरनी की संतान बलवान और दीर्घायु हुई, जबकि सियारिन की संतान कमजोर और अल्पायु रही।
- इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि व्रत को सच्ची निष्ठा और नियमों से करना चाहिए।
2. राजा जीमूतवाहन की कथा
कथा के अनुसार, राजा जीमूतवाहन बहुत दयालु और धर्मात्मा थे।
- एक दिन उन्होंने देखा कि नाग जाति के लोग हर वर्ष गरुड़ को एक नाग देकर उसकी बलि चढ़ाते हैं।
- उस समय एक नाग युवक अपनी बारी पर गरुड़ को समर्पित होने जा रहा था।
- राजा जीमूतवाहन ने उस नाग की जगह स्वयं को बलि के लिए प्रस्तुत कर दिया।
- उनकी निस्वार्थ भक्ति और त्याग से प्रभावित होकर गरुड़ ने किसी की बलि न लेने का वचन दिया।
- तभी से यह मान्यता बनी कि इस व्रत के प्रभाव से संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं और वह सुरक्षित रहती है।
🌅 पारण विधि (नवमी)
- नवमी तिथि की सुबह व्रती महिलाएँ स्नान कर पूजा करती हैं।
- पारण का समय सूर्योदय के बाद होता है।
- पारण में फल, दूध, अन्न ग्रहण कर व्रत का समापन किया जाता है।
🔯 ज्योतिषीय दृष्टि से महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह व्रत संतान भाव (पंचम भाव) और चंद्रमा को सुदृढ़ करता है।
- जिन माताओं की कुंडली में पुत्र-संतान से संबंधित दोष हों, उन्हें यह व्रत विशेष लाभ देता है।
- यह व्रत पुत्र कामेष्टि यज्ञ का सरल और गृहस्थ जीवन के लिए अनुकूल रूप माना जाता है।
🌟 व्यावहारिक ज्योतिषीय उपाय
- संतान के स्वास्थ्य हेतु गाय को हरी दूब और गुड़ खिलाएँ।
- बुध और चंद्र ग्रह को मजबूत करने के लिए सोमवार को दूध का दान करें।
- व्रत के दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का 108 बार जाप विशेष फलदायी है।
- जिन माताओं को संतान की शिक्षा में बाधा हो, वे व्रत के दिन पीली वस्तु का दान करें।
✨ निष्कर्ष
जितिया व्रत केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि मातृत्व का अद्भुत प्रतीक है। यह व्रत माताओं की निष्ठा, तपस्या और संतान-प्रेम को दर्शाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी यह व्रत संतान सुख और परिवारिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
Q1. भारत में जितिया व्रत कहाँ-कहाँ मनाया जाता है?
👉 जितिया व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्सों और नेपाल में बड़ी श्रद्धा और परंपरा के साथ मनाया जाता है।
Q2. जितिया व्रत क्यों मनाया जाता है?
👉 यह व्रत माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य और जीवन में समृद्धि की कामना से करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस व्रत के प्रभाव से संतान पर आने वाले संकट दूर हो जाते हैं और जीवन सुखमय बनता है।